आयुर्वेदीय आहारविधी का तिसरा नियम है - मात्राशी स्यात्। अर्थात आहार सदैव उचित मात्रा में ही लेना चाहिए। अब यह 'उचित मात्रा' (Optimum quantity) मतलब कितनी मात्रा? तो आयुर्वेद इसकी व्याख्या करता है 'अग्निबलापेक्षिणी' अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की उचित मात्रा यह उस व्यक्ति के पाचकाग्नि के बल (ताकत) पर निर्भर करती है। इसीलिए सबके लिए एक ही मात्रा का निर्धारण नही किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ती का अग्निबल अलग अलग रहता है और यह अग्नि भी प्रकृति, ऋतु, देश, कालपरत्वे भिन्न भिन्न होता है। एक पुरुष मे ही भिन्न भिन्न ऋतु, वय, दिन और रात्री के अनुसार आहारमात्रा भी भिन्न होती है। अतःएव जितनी आहारमात्रा को अपनी पाचकाग्नि आसानी से और सुखपूर्वक पचा सके, वही मात्रा उस व्यक्तिविशेष के लिए उचित कहलाती है। फिर यह मात्रा किसी व्यक्ति के लिए 2 रोटियाँ भी हो सकती है तो किसी के लिए 15-20 रोटियाँ भी हो सकती है। परंतु प्रसंगवश समझो या प्रज्ञापराधवश लोग इस आहारमात्रा मे गड़बड़ियां करते है, जैसे -
- कुछ लोग भोजन स्वादिष्ट होता है, इसीलिए ज्यादा खाते है।
- कुछ लोग शाम को खाने के लिए समय नही मिलेगा इसीलिए दोपहर में ही ज्यादा खाते है तो कुछ लोग दोपहर में काम बहोत रहता है या ऑफिस में टिफिन ले जाना जान पे आता है इसीलिए दोपहर की कसर शाम को निकाल लेते है।
ऐसे एक नही अनेक कारणों से लोग 'उचित मात्रा' का अतिक्रमण करते है।
कुछ लोगों को गरीबी की वजह से पेटभर खाना नही मिलता। मतलब यहाँ भी पेट को अन्न उचित मात्रा मे प्राप्त नही होता। इस तरह से कही अतियोग तो कही अयोग होता है। ये दोनों परिस्थितियाँ अगर दीर्घकाल बनी रहे तो पाचकाग्नि से संबंधित व्याधियाँ अनिवार्यतः उत्पन्न होती ही है। परंतु हम इन आदतों के इतने आधीन हो जाते है कि इन अनियमितताओंका अनुसरण करके हम पाचनतंत्र के साथ कोई अन्याय कर रहे है ये ख्याल भी मनुष्य को नही आता।
आयुर्वेद इस विषय को और स्पष्ट करते हुए कहता है कि भोजन के समय जठर ( आमाशय, stomach) के तीन कल्पित विभाग करके एक भाग घन द्रव्यों से भरे, दूसरा भाग द्रव पदार्थों से भरे परंतु तिसरा भाग रिक्त (खाली, empty) रखे। व्यावहारिक रूप से बोला जाये तो भरपेट खाना न खायें, आधी-एक रोटी की जगह खाली रखकर ही भोजन समाप्त करें। यह रिक्तता अन्न का पाचन सुखपूर्वक होने के लिए अत्यंत जरूरी है। जैसे मिक्सर के बर्तन में सब्जी का गिला मसाला (gravy)बनाना हो, तब मिक्सर के बर्तन में कुछ भाग रिक्त छोड़कर ही मिक्सर चलाते हैं, तभी आसानी से गिला मसाला तैयार हो जाता है। वही मिक्सर के बर्तन में मसाला पूरा बर्तन के गले तक भर दो और मिक्सर चलाओ, बर्तन का ब्लेड घूमेगा ही नही, फस जायेगा। यही बात पुरुष के पेट पर भी लागू पड़ती है। पाचन सुचारू रूप से संपन्न हो इसीलिये हमे पेट मे थोड़ा रिक्त भाग रखना ही पड़ेगा। इससे ये बात साफ है की प्रत्येक पुरुष के आहार की उचित मात्रा ये दो भाग जितनी ही होती है। इसीलिए थोड़ा पेट खाली रखके मात्रावत आहार का सेवन करना ही हितकर होता है। पाचन संस्थान को सबल एवम सक्रिय बनाये रखने का यही रहस्य है।
अस्तु। शुभम भवतु।
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