आयुर्वेदीय आहारविधी का पाँचवा नियम है - वीर्याविरुद्धमश्नीयात।
अर्थात अविरूद्ध वीर्यवाले आहारद्रव्य/खाद्यपदार्थ एकसाथ ही खाने चाहिए। मतलब जिन दो खाद्यपदार्थों का वीर्य समान हो उन्हें ही साथ-साथ/ एकसाथ खा सकते है।
परंतु अब वीर्य मतलब क्या?
आयुर्वेदीय परिभाषा में वीर्य का मतलब Potency होता है। अर्थात किसी भी द्रव्य (Matter) की कार्य करने की शक्ति। पृथ्वी पर कोई भी द्रव्य/आहारद्रव्य/औषधद्रव्य बिना वीर्य (Potency) के कार्य नही करता। यह वीर्य जितना बलवान, द्रव्य उतना ही तीक्ष्ण एवम शीघ्र कार्यकारी होता है और जितना दुर्बल द्रव्य उतना ही दुर्बलता से मंदगति / धीमेधीमे से कार्य करेगा।
आहारविधी का स्पष्टीकरण देते हुए आयुर्वेद इस संदर्भ मे कहता है की अविरूद्ध (समान, same) वीर्य वाले आहारद्रव्यों को ही साथ-साथ/ एकसाथ खाना चाहिए। अन्य शब्दों मे कहे तो विरुद्धवीर्य वाले आहारद्रव्यों को साथ साथ मे खाना नही चाहिए।
वीर्य शब्द की परिभाषा तो हमने समझ ली, अब 'विरुद्ध' शब्द को समझते है। आयुर्वेद विरुद्धवीर्य आहारद्रव्यों के सेवन का निषेध करता है। इसमे विरुद्ध शब्द 'वीर्य' से संबंधित नही। मतलब सेवन किये जानेवाले दो द्रव्यों का वीर्य एक दूसरे से अलग हो तो भी चलेगा ऐसा आयुर्वेद का मन्तव्य है। यहाँ विरुद्ध शब्द से 'रस-रक्त-मांस-मेद-अस्थि-मज्जा एवं शुक्र' इन सात शरीर धातुओं से विरुद्ध ऐसा है। शायद अब ये संकल्पना आपको समझ मे आई होगी। मतलब आयुर्वेद यह कहता है की ऐसे ही दो आहारद्रव्यों का एकसाथ सेवन करो जिनको संयोग शारीर धातुओं के लिए घातक साबित ना हो।
संक्षिप्तत: अविरूद्ध वीर्य और विरुद्धवीर्य को निम्नलिखीत शब्दो मे समझा जा सकता है।
अविरूद्ध वीर्य (समवीर्य) का अर्थ - जिनका संयोग शारीर धातुओं के लाभदायी हो। पोषक हो।
विरुद्धवीर्य का अर्थ- जिनका संयोग शारीर धातुओं को दूषित करके उनका नाश कर देता है, जैसे दूध और मछली का संयोग।
दूध और मछली (fish curry) कभी भी साथ-साथ नही खानी चाहिए या मछली का माँस खाने के बाद उसका पूर्ण पाचन होने के पहले दूध सेवन नही करना चाहिए। इनका संयोग शारीर धातुओं के लिए विषवत काम करता है। वास्तविक रूप से देखा जाए तो दूध और मछली दोनों अलग अलग खाने से कोई समस्या नही होती। सिर्फ इनका संयोगविशेष ही रोगोत्पत्तिकर है। संसार मे करोड़ो लोग रहते है। उनमें से कुछ लोग समान विचारधारा के रहते है तो कुछ विरुद्ध विचारधारा के होते है। अब समझिये की विरुद्ध विचारधारा के दो लोग एक कमरे में एकत्र रह रहे है। तो क्या होगा? जाहिर है कि दोनों में सौहार्द तो रहनेवाला है नही, बल्कि झगड़ा ही होगा। अब ये झगड़ा हिंसक होगा या सिर्फ बातों-बातों का ये दोनों लोग कितने ताकतवर है इसपे आधारित होगा। दोनों बलवान होंगे तो झगड़ा हिंसक भी होगा, एक दूसरे को चोट पहुचायेंगे, जख्मी करेंगे। ये दोनों प्रतिद्वंदीयोंका झगड़ा बनाम युद्ध जहाँ होगा उस कमरे की भी अपूरणीय क्षति होती है। यही तर्क विरुद्धवीर्य वाले आहारद्रव्यों को भी लागू पडता है। ये विरुद्धवीर्य वाले द्रव्य का संयोग मतलब झगड़ा और ये जहाँ जिस जगह पे (कमरे में) झगड़ते है वो क्षेत्र होता है शारीर धातू। इसीलिये विरुद्धवीर्य द्रव्यों का सेवन धातुओंको दूषित करके उन्हें दुर्बल बना देता है। विरुद्धाहार दूषिविष (slow posion) से एक कदम आगे है परंतु गरविष (actual poision) से एक कदम पीछे है। इसीलिये विरुद्धाहार संभव हो तब तक टालना ही बेहतर है।
आयुर्वेद के ग्रन्थों मे विरुद्धाहार से उत्पन्न व्याधियों की सूची दी गई है। एक बार इन पर भी नजर डालिये तो आपको विरुद्धहार की घातकता का अंदाजा आयेगा।
षाण्ढ़यांन्धवीसर्पदकोदराणां विस्फोटकोन्मादभगन्दरणाम।
मूर्च्छामदाध्मानगलग्रहाणां पाण्डवामयस्यामविषस्य चैव ।।
किलासकुष्ठग्रहणीगदानां शोथाम्लपित्तज्वरपीनसानाम् ।
सन्तानदोषस्य तथैव मृत्योर्विरुद्धमन्नम प्रवदन्ति हेतुम्।। च.सू.102-103
षाण्ढ़य मतलब नपुंसकता (Infertility ), आंध्य मतलब Blindness , विसर्प मतलब Pemphigus like skin diseases, दकोदर मतलब Ascites, विस्फोटक मतलब Bullous skin diseases, उन्माद मतलब पागलपन, भगन्दर मतलब fistula , मूर्च्छा मतलब बेहोश होना, मद मतलब delirium , आध्मान मतलब Gaseous distension, गलग्रह मतलब Like throat cancer, पाण्डु मतलब Anemia , किलास मतलब सफेद दाग, कुष्ठमतलब Skin diseases, ग्रहणी मतलब पाचन खराब होना, शोथ मतलब सूजन, अम्लपित्त मतलब Acidity , ज्वर मतलब Fever , पीनस मतलब Rhinitis , सन्तानदोष मतलब Genetic abnormality in children, मृत्यु मतलब Death ....
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