दिनचर्या भाग - 1
ब्राम्ह मुहूर्त उत्तिष्ठेत
Getting up early in the Morning
ब्राम्ह मुहूर्त उत्तिष्ठेत अर्थात सुबह नींद से जल्दी उठना। ब्राम्ह मुहूर्त रात्री का अंतिम प्रहर होता है, जो सूर्योदय से डेढ घण्टा पहले शुरू होता है। ब्राम्ह मुहूर्त मे उठना अर्थात प्रातोत्थान यह दिनचर्या का पहला सोपान है। सुबह उठने के लिए हमारे ऋषि-मुनियो ने ब्राम्ह मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। आयुर्वेद कहता है - ब्राम्ह मुहूर्त उत्तिष्ठेत स्वस्थो रक्षार्थमायुष:। अर्थात एक स्वस्थ पुरुष को अपनी आयु की रक्षा करने के लिए प्रातःकाल ब्राम्ह मुहूर्त मे उठना चाहिए। इससे दो बाते स्पष्ट होती है -
1. ब्राम्ह मुहूर्त मे स्वस्थ व्यक्ति को ही उठना चाहिए। व्याधिग्रस्त व्यक्ति के लिए यह उचित नही है।
2. इससे आयु की रक्षा होती है मतलब प्रातोत्थान मनुष्य शरीर मे ऐसे सकारात्मक बदल उत्पन्न करता है जो मनुष्य को दीर्घायु करता है। इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति ब्राम्ह मुहूर्त मे भी सोता रहता है तो - ब्राम्ह मुहूर्त या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी। यह उसका शयन पुण्यक्षय का कारण बनता है। सामान्य भाषा मे पुण्य मतलब अच्छा और पाप मतलब बुरा। इस हिसाब से पुण्यक्षयकारक मतलब शरीर से अच्छी बातों को घटानेवाला। मतलब ब्राह्म मुहूर्त में शयन यह निश्चित ही कुछ उपकारक भावों को शरीर से घटाता होगा। ब्राम्ह मुहूर्त मे उठना आयु को बढनेवाला बताया है, इससे विपरीत संदर्भ अगर लिया तो, ब्राम्ह मुहूर्त मे सोते रहना यह आयु का क्षय करने वाला होता है।
ब्राम्ह मुहूर्त मे उठने के जितने शारीरिक लाभ है, उतने ही आध्यात्मिक लाभ भी है। गाढ़ी नींद के बाद व्यक्ति जब सोकर उठता है, तब उसका मन प्रसन्न, शांत एवं स्थिर रहता है। ऐसी स्थिती मे भगवत ध्यान बढिया होता है और पढाई भी। इसीलिए एक सन्यासी/गृहस्थाश्रमी व्यक्ति को ब्राम्ह मुहूर्त मे उठना जितना लाभदायक है, उतना ही एक विद्यार्थी के लिए भी। प्रातःकाल की इस बेला मे वातावरण शुद्ध अर्थात प्रदूषणमुक्त भी होता है और वातावरण मे 41% ऑक्सीजन होता है ऐसा वैज्ञानिकोने सिद्ध कर दिया है। किसी भी काम की शुरुवात अगर शुभ हो, तो वह काम अंत तक निर्विघ्न होता है ऐसा माना जाता है। शांत, प्रसन्न एवं स्थिर मन से की गई ऐसी दिन की शुरुवात सदैव शुभ होती है, जो सम्पूर्ण दिन मन एवं शरीर का ऊर्जास्तर बनाये रखने मे मदत करती है। मनुष्य शरीर मे एक जैविक घडी (Biological Clock) होती है जो सूर्योदय के साथ पूर्णगति से काम करना शुरू कर देती है और सूर्यास्त के बाद धीमीगति से काम करती है। ब्राम्ह मुहूर्त मे उठने से इस जैविक घडी का शरीर के साथ उत्कृष्ट समायोजन (Adjustment) होता है। इसीलिए ब्राम्ह मुहूर्त मे उठनेवाले लोगों का स्वास्थ सदैव अच्छा बना रहता है।
परंतु क्या ब्राम्ह मुहूर्त मे उठना आजकल संभव है?
उत्तर स्पष्ट है - नही।
स्वातंत्र्यपूर्व काल मे या 70 के दशक तक यह भले ही संभव था, पर उसके बाद तो कतई नही। क्योकि आजकी जीवनशैली ब्राम्ह मुहूर्त मे उठने के लिए जरा भी अनुकूल नही है।
प्राचीन काल मे सुबह जल्दी उठना ये संभव भी था, इसका कारण उस वक्त बिजली नही थी। लोग सूर्यास्त से पहले ही रसोई बनाकर खाना खा लेते थे और अन्य घरेलू काम संपन्न कर लेते थे। इसीलिए रात को 8 बजे सोकर सुबह 4.30 बजे ब्राह्म मुहूर्त में उठना उनके लिए पूर्णरूप से संभव भी था। पर वर्तमान समय मे तो हमारी रात ही 8 बजे शुरू होती है। लोग रात को 10 बजे खाना खाते है और 11-12 बजे सोते है। विद्यार्थी या अन्य तरुणवर्ग तो फेसबुक और वाट्सअप की वजह से रात को 3 या 4 बजे सोते है। अब इस समय पर अगर कोई व्यक्ति सोता है तो उसे सुबह 4/4.30 बजे उठाने की सलाह देना मूर्खतापूर्ण ही है। प्रत्येक व्यक्ती के लिए 8 घण्टे की नींद लेना अनिवार्य है। समयाभाव मे कम से कम 6 घण्टे तो सोना ही चाहिए। हालाँकि अभी उपर जो आधुनिक रात्रीचर्या की शुरुवात बतायी गयी है, उसका कतई समर्थन नही किया जा सकता। पुराने रीती रिवाज ही सही थे ये निःसंशय सत्य है। पर कई बार कुछ अपरिहार्य कारणों की वजह से उनका पालन नही किया जा सकता। पर 'कुछ नही' से 'कुछ तो सही' जरूर किया जा सकता है। सुबह 4-5 बजे भले हम नींद से उठ ना सके पर कमसे कम 6 बजे तो उठ ही जाना चाहिए, अन्यथा जैविक घड़ी से शरीर व्यवस्था की विसंगती उत्पन्न होकर व्याधी निर्माण होने में देर नही लगती।
अस्तु। शुभम भवतु।
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