Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu) 06 Jun 2017 Views : 4278
Vaidya Somraj Kharche, M.D. Ph.D. (Ayu)
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अंकुरित धान्य -सेवनयोग्य या अयोग्य?

हरे मूँग, चना, मटकी, गेहू जैसे धान्यों को पानी मे भिगोकर या गीले कपडे में बाँधकर अंकुरित होने के बाद उसके तरह तरह के व्यंजन (recipes) बनाकर बनाकर आज खाये जाते है। कोई नाश्ते में कच्चे खाता है तो कोई सब्जी बनाकर मुख्य आहार मे लेता है। ढाबे से लेकर पाँच सितारा होटल तक, गरीब की झोपड़ी से लेकर अमीरों के महलो तक अंकुरित धान्यों से बने व्यंजन बडे ही चाव के साथ बनाये और खाये जाते है।

पर क्या कभी किसी ने इनकी खाद्यउपयोगिता के बारे मे सोचा है?

आधुनिक आहारशास्त्र अंकुरित धान्य खाने की सलाह देता है, इसका मतलब अंकुरित धान्य खाना सही ही होगा, ऐसा आपने सोचा होगा.... बराबर ना?

पर हमारा अपना शास्त्र आयुर्वेद, अंकुरित धान्य के बारे मे क्या कहता है, क्या ये जानने का प्रयास कभी किया है आपने?

आधुनिक आहार शास्त्र विश्व में उत्पन्न हुये प्रत्येक आहारद्रव्य (foodstuff) को प्रोटीन, फैट और कार्बोहाइड्रेट के दृष्टी से देखता है, वही आयुर्वेद विश्व में उत्पन्न प्रत्येक आहारद्रव्य का उसकी पाचभौतिक संरचना के आधार पर मूल्यांकन करता है। इसीलिये एक ही आहारद्रव्य के लिये दोनों शास्त्रों के दृष्टिकोन में जमीन आसमान का फर्क हो सकता है, और यही आज के स्वास्थ्यसूत्रमाला की विषयवस्तु है।

आधुनिक आहारशास्त्र के अनुसार -

1) अंकुरित धान्यों मे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा प्रोटीन से कम होती है, जिससे उनकी पाचनसुलभता बढती है।

2) अंकुरित धान्यों मे पोषकांश ज्यादा मात्रा में रहते है।

3) अंकुरित धान्यों मे स्थित पोषकांश शारीर घटकों के साथ जल्दी घुलमिल जाते है, तथा शोषित हो जाते है।

4) अंकुरित धान्य रक्तशर्करा का नियमन करते है।

परंतु आयुर्वेद का मन्तव्य (opinion) आधुनिक आहारशास्त्र के पूर्णत: विरुद्ध है। महर्षि चरकाचार्य ने चरकसंहिता मे चिकित्सा वर्णन करने से पहले ही रसायनाधिकार मे अंकुरित धान्यों के सेवन का निषेध किया है। अंकुरित धान्य को आयुर्वेद मे ग्राम्य आहार (Junk food) कहा गया है। ऐसा आहार सेवन करने से शरीर मे त्रिदोष प्रकोप होता है। शरीर की मांसपेशीया ढीली पड जाती है। संधि विकृती उत्पन्न होती है। रक्त मे विदाह होने लगता है, अस्थि, मेद तथा शुक्र धातुओं मे विकृती उत्पन्न होती है। शरीर ओजहीन तथा रोगों का अधिष्ठान बन जाता है।

आयुर्वेद प्रत्येक आहारद्रव्य की पांचभौतिक संरचना को उसके कर्मों का आधार मानता है। इस परिप्रेक्ष्य मे, यहाँ भी यही सिद्धान्त लागू होता है। बीज जब तक बीजस्वरूप है, तब तक बीज की पांचभौतिक संरचना मानवदेह के पोषण के लिये होती है, इसलिए कोई भी बीज खाने से मनुष्य में कभी भी उपरोक्त विकारो की उत्पत्ति नही होती। क्योंकि बीज मनुष्य सेवन के लिए ही बना होता है। परंतु इसी बीज में जब अंकुरण होना शुरू होता है, तब उसकी पांचभौतिक संरचना बदलकर उस नवजात अंकुर के पोषण के लिये अनुकूल हो जाती है। इसलिये कोई भी बीज अंकुरण के पश्चात मनुष्य के लिये कभी भी हितकर नही हो सकता।

अब आप ऐसे सोच रहे होंगे की मैं तो पिछले कई दिनों, महीनो और सालों से अंकुरित धान्य खा रहा हूँ, पर मुझे तो कुछ नही हुआ? बराबर न?

तो बात तो आपकी भी सही है, क्योंकि जो प्रत्यक्ष दिख रहा है वो तो शास्त्र के विरुद्ध है। पर क्या आपने कभी किसी को सुबह बीड़ी/सिगारेट पीने के बाद शाम तक कैंसर होते देखा है? क्या आपने किसी को दो महीन-चार महीने तमाखू/गुटखा खाने के बाद कैंसर होते देखा है? क्या आपने किसी को 5-6 साल तक भी दारू पीने के बाद लिवर ख़राब होते देखा है? नहीं न?

तो इन तीनो प्रश्नों में आपके प्रश्न का भी उत्तर छुपा हुआ है। अर्थात कोई सेंद्रिय असात्म्य आहार (incompatible diet) लेने के बाद शरीर तुरंत प्रतिक्रिया नही बनाता। जब तक वह असात्म्य आहार एक निश्चित मारक स्तर तक नही पहुँचता, तब तक वो भी अपने शरीर को हानी नहीं पहुँचाता। इसे ही आयुर्वेद दूषीविष अर्थात slow poison कहता है। अंकुरित धान्याहार भी इसी श्रेणी (Category) के अंतर्गत ही आता है। आप समाज में एक छोटासा सर्वे (survey) कीजिये। अंकुरित धान्य के जैसा तथाकथित हेल्दी फ़ूड (Healthy food) लेने वाले सज्जनों का सर्वे कीजिये। इनमेंसे ज्यादातर लोगों में बीपी, डायबिटीज़, सफ़ेद दाग़, अचानक बाल झड़ना, नजर कमजोर होना, अचानक पुरे शरीर में खुजली शुरू होना, कम आयु में ही अधेड़ उम्र का नजर आना, वारंवार विस्मरण होना (आज जिसे देखा, एक हफ्ते के बाद उसे ही न पहचानना) इस तरह की समस्याएं मिलेगी। इन सब सज्जनो के पैथोलॉजी रिपोर्ट्स सामान्य ही आते है, फिर भी उपरोक्त विकृतिया तो इनमे मिलती ही है। इसका मतलब पैथोलॉजी मशीन उस कारण को ढूँढने में असमर्थ है, जिसकी वजह से ये समस्याएं उत्पन्न हो रही है। तो वो कौनसे कारण हो सकते है, जिन्हें पैथोलॉजी मशीन ढ़ूँढ नही पाती? इसका उत्तर बहोत ही सीधा सीधा है - अंकुरित धान्य जैसे ग्राम्य आहार। इसलिए अपने प्राचीन ऋषि-मुनियो के शास्त्रवचनों पर विश्वास रखिये और ऐसे ग्राम्य आहार का त्याग करे। यही सदैव स्वस्थ बने रहने की चाबी है।

अंकुरित धान्य, पिज़्ज़ा, बर्गर जैसे ग्राम्य आहार से उत्पन्न दुष्परिणामों के निर्हरण के लिए स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरंड तैल से तज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर की देखरेख में विरेचन करवाना चाहिए और पश्चात स्वामीआयुर्वेद सुवर्णप्राशनम जैसे नित्य सेवनीय रसायन का उपयोग करना चाहिये। ऐसे आहार से उत्पन्न अम्लपित्त जैसी अवस्थविशेष में स्वामीआयुर्वेद द्राक्षावलेह का भी उपयोग किया जा सकता है।

अस्तु।शुभम भवतु।

© श्री स्वामी समर्थ आयुर्वेद सेवा प्रतिष्ठान, खामगाव 444303, महाराष्ट्र