क्यूँ सबका कोलेस्टेरॉल बढता है आजकल?
हॉस्पीटल के बाह्यरुग्ण विभाग (OPD) मे आनेवाले 10 रुग्णों मे से कम से कम एक रुग्ण का कोलेस्टेरॉल, ट्रायग्लिसराईड्स, एल. डी. एल. अर्थात लिपीड प्रोफाइल (Lipid profile) बढ़ा हुआ रहता है और मजे की बात तो यह है की यह बताते वक्त रुग्ण मे जरा भी दुःख / चिंता का भाव नही रहता। उल्टे उसके चेहरे पे खुशी का भाव रहता है। क्यूँ की कोलेस्टेरॉल/लिपिड प्रोफाइल बढना ये आजकल वैभव-प्रतीक (status symbol) माना जाता है। हायपरलिपीडेमिया (Hyperlipidemia) ये धनिक लोगों का व्याधी माना जाता है। हालाँकि ये रुग्ण लक्षणरहित (Asymptomatic) होते है। विधिवशात (Accidentally) किसी कारण से जब स्वास्थ की जॉच की जाती है तब लिपिड प्रोफाइल बढा हुआ है ऐसा पता चलता है। परंतु यहा विचारणीय यह है की ये लिपिड प्रोफाइल आजकल क्यूँ इतना तेजी से बढ रहा है? आइये इसी से संबंधित कुछ पहलूओं पर विस्तार से चर्चा करते है।
लिपीड प्रोफाइल क्या है?
लिपीड प्रोफाइल यह एक प्रयोगशालीय परिक्षण समूह है। जिससे शरीर मे स्थित प्राकृतिक स्नेह द्रव्यों का प्राकृत मान जाँचा जाता है। इसके अंतर्गत कोलेस्टेरॉल, ट्रायग्लिसराईड्स, HDL, LDL इनका प्रमाण मापा जाता है।
मनुष्य शरीर मे लिपीडस् की क्या भूमिका है?
शरीर चलाने के लिये कुछ संप्रेरको (Hormones) की आवश्यकता होती है। यह सम्प्रेरक निर्माण करने के लिये शरीर को आवश्यक उर्जा देने का काम लिपीडस् करते है। खाया हुआ अन्न पचाने एवं शोषण करने के लिये भी लिपीडस् सहायक होते है।
शरीर मे लिपीडस् बढते क्यूँ है?
आयुर्वेद उपरोक्त प्रश्न का उत्तर एक ही शब्द मे देता है - मंद पाचकाग्नि। अर्थात पाचकाग्नि मंद होना ही लिपीडस् बढने का मुख्य कारण आयुर्वेद मानता है। परंतु आधुनिक विज्ञान के अनुसार चर्बी से युक्त आहार का अत्याधिक सेवन लिपीडस् बढने का मुख्य कारण है।
पाचकाग्नि मंद होने के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित है।
1) भोजन के तुरंत पहले पानी/ ठण्डा पानी/फ्रिज का पानी/कोल्ड्रिंक पीना।
2) खाना खाते वक्त ज्यादा पानी पीना।
3) खाना खाने के तुरन्त बाद बहोत सारा पानी पीना।
4) खाना खाते वक्त बाते करना, टीवी/मोबाईल देखना, पढ़ाई करना।
5) भय, क्रोध तथा विषाद (depression) से युक्त मन से आहार सेवन करना।
6) कोई अन्य काम है, ऑफिस/ कॉलेज/ कंपनी में खाने की छुट्टी का समय कम है, कही जल्दी जाना है, दुकान संभालने कोई नही है, इसलिये जल्दी जल्दी खाना।
7) विरुद्ध आहार सेवन करना। इत्यादि
उपरोक्त सभी कारणों का सेवनसातत्य अगर रोज रहा, तो पाचकाग्नि निश्चित रूप से मंद होता है। ऐसी हालत मे पाचकाग्नि एक सादी रोटी भी नही पचा सकता, तो अत्याधिक चर्बीयुक्त आहार तो बहोत दूर की बात है। चर्बीवाला आहार अगर ऐसी स्थिती मे सेवन कर लिया तो मंद पाचकाग्नि अपनी शक्ति के अनुसार उसे पचाने की शुरवात तो कर देता है, पर चूँकि पाचकाग्नि का सामर्थ्य (दुर्बलता की वजह से) उसे पूरा पचा सके इतना नही रहता इसीलिये पाचकाग्नि आहार मे स्थित उस चर्बी को अधपका ही छोड देता है। अर्धपक्व छोडी हुई यह चर्बी ही कोलेस्टेरॉल, ट्रायग्लिसराईड्स, के रूप मे विकृत वृद्धि को प्राप्त होती है और इस तरह से लिपीडस् बढना शुरू हो जाते है। इसे एलोपैथी मे Hyperlipidemia भी कहा जाता है। यह अर्धपक्व चर्बी एक मर्यादा के बाद जब बढती है, तो हृदय से सम्बंधित बडी बडी रक्तवाहिनीयों के अतः त्वचा पर संचित होना शुरू हो जाती है, जिसकी वजह से हृदय को अव्याहत रूप से होनेवाली रक्त की आपूर्ति मे बाधा उत्पन्न होती है, जिसे हम आजकल हार्ट अटैक के नाम से जानते है।
निवारण:
आयुर्वेद शास्त्र कोई भी व्याधी की चिकित्सा करने की बजाये उसके रोकधाम को ज्यादा महत्व देता है। अतः एव लिपीडस् न बढे इसलिये आयुर्वेद मे कह गये आहारविधीविधान (जिसे आयुर्वेद अष्टौ आहारविधि विशेषायतन के नाम से संबोधित करता है) का पालन करना चाहिये। भोजन करते वक्त सिर्फ ३०० मिली तक (आवश्यकता हो तो ही) ही गरम पानी पीना चाहिए। भोजन समाप्त होने के बाद एक घूँट भी पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि भोजन के २ घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए और वो भी गरम ही। अगर भोजन के साथ छाछ पीना है तो वो भी ताज़ी बनाई हुई, बिना मख्खनवाली और जिसे बघार दिया गया हो ऐसी एक कप छाछ का सेवन हितकर होता है। आहार में स्निग्ध (तैल/घी वाले) पदार्थ अगर ज्यादा है तो खाना खाते वक्त और खाने के २ घंटे बाद गरम पानी पीना अनिवार्य है अन्यथा सेवन किए फैट्स का योग्य पाचन नहीं होता। सोंठ और जीरे से सिद्ध जल का हो सके तो पुरे दिन भर पान करना चाहिए। तज्ञ आयुर्वेद डॉक्टर की देखभाल मे ऋतुशोधन प्रत्येक वर्ष मे करना चाहिये। ऋतुशोधन रोकधाम (prevention) और उपचार (cure) दोनो दृष्टी से कारगर है। विरेचन अथवा सद्योविरेचन के लिये स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरण्ड तैल का उपयोग करना चाहिये। स्वामीआयुर्वेद सिद्ध एरण्ड तैल शुण्ठी एवं गुडूची जैसी उत्कृष्ट आमपचन औषधीयो से सिद्ध किया हुआ है, इसीलिये 2 -2 चम्मच की मात्रा मे कुछ समय तक इसका नित्यसेवन ऐसे व्याधियों में अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
अस्तु। शुभम भवतु।
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